कहानी मुसाफिर कि
मुसाफिर बनकर इस दुनिया मे आते हैं,
तो क्यूँ किसी से दिल लगाते हैं,
किसी अजनबी को अपना बनाते हैं,
अकेले ही आते हैं इस दुनिया मे ,
इस दुनिया से अकेले ही जाते हैं,
तो फिर साथ जीने मरने का कसमे क्यूँ खाते हैं|
दोश्ती,मोहबत,नफ़रत,परिवार,
सब यही तो पाते हैं|
एक समय बाद सबको छोड़कर चले जाते हैं,
तो फिर क्यूँ,
बिछड़ने के बाद आंशु बहाते हैं|
जानते हैं मुसाफिर आते हैं,
हंसते हैं हँसातेहै|
सुख दुख मे साथ निभाते हैं|
एक दिन सबको छोड़कर चले जाते हैं,
तो फिर क्यूँ ,
तो क्यूँ उनसे नयन लड़ाते हैं,
दिल मे उनको बासाते हैं|
जब वो छोड़कर चले जाते हैं|
तो बेबफा का इल्ज़ाम लगाते हैं|
इलज़ाम लगाने वाले,
एक हक़ीकत भूल जाते हैं,
वो भी एक मुसाफिर हैं,
खुद एक दिन सबको छोड़कर चले जाते हैं|
तो फिर क्यूँ,
किसी पे ग़लत इलज़ाम लगाते हैं|
खुद ही बेबफ़ाई करते हैं,
दूसरो को बेबफा बताते हैं|
खुद भी सारे सफ़र मे रोते हैं,
और दूसरो को भी रुलाते हैं|
दिल हमारे नॅशवार शरीर का हिस्सा हैं,
और प्यार एहसास |
तो फिर क्यूँ,
दिल तोड़ने का इलज़ाम,
प्यार करने वाले पे लगाते हैं|
बिछड़ने का एहसास तो,
सभी को होता हैं,
ये तो सभी को तड़पाते हैं|
पर मुसाफिर को तो जाना है|
इसलिए साथ मे यादे लेकर चले जाते हैं,
और यादे ही छोड़ जाते हैं,
वो जो साथ ले जाते हैं,
वही हमारे पास भी छोड़ जाते हैं|
तो फिर क्यूँ,
हमेशा उनको धोखेबाज, बेबफा आदि नामो से बुलाते हैं|
आख़िर क्यूँ...क्यूँ...क्यूँ...||
एक मुसाफिर-विजय कुमार
मुसाफिर बनकर इस दुनिया मे आते हैं,
तो क्यूँ किसी से दिल लगाते हैं,
किसी अजनबी को अपना बनाते हैं,
अकेले ही आते हैं इस दुनिया मे ,
इस दुनिया से अकेले ही जाते हैं,
तो फिर साथ जीने मरने का कसमे क्यूँ खाते हैं|
दोश्ती,मोहबत,नफ़रत,परिवार,
सब यही तो पाते हैं|
एक समय बाद सबको छोड़कर चले जाते हैं,
तो फिर क्यूँ,
बिछड़ने के बाद आंशु बहाते हैं|
जानते हैं मुसाफिर आते हैं,
हंसते हैं हँसातेहै|
सुख दुख मे साथ निभाते हैं|
एक दिन सबको छोड़कर चले जाते हैं,
तो फिर क्यूँ ,
तो क्यूँ उनसे नयन लड़ाते हैं,
दिल मे उनको बासाते हैं|
जब वो छोड़कर चले जाते हैं|
तो बेबफा का इल्ज़ाम लगाते हैं|
इलज़ाम लगाने वाले,
एक हक़ीकत भूल जाते हैं,
वो भी एक मुसाफिर हैं,
खुद एक दिन सबको छोड़कर चले जाते हैं|
तो फिर क्यूँ,
किसी पे ग़लत इलज़ाम लगाते हैं|
खुद ही बेबफ़ाई करते हैं,
दूसरो को बेबफा बताते हैं|
खुद भी सारे सफ़र मे रोते हैं,
और दूसरो को भी रुलाते हैं|
दिल हमारे नॅशवार शरीर का हिस्सा हैं,
और प्यार एहसास |
तो फिर क्यूँ,
दिल तोड़ने का इलज़ाम,
प्यार करने वाले पे लगाते हैं|
बिछड़ने का एहसास तो,
सभी को होता हैं,
ये तो सभी को तड़पाते हैं|
पर मुसाफिर को तो जाना है|
इसलिए साथ मे यादे लेकर चले जाते हैं,
और यादे ही छोड़ जाते हैं,
वो जो साथ ले जाते हैं,
वही हमारे पास भी छोड़ जाते हैं|
तो फिर क्यूँ,
हमेशा उनको धोखेबाज, बेबफा आदि नामो से बुलाते हैं|
आख़िर क्यूँ...क्यूँ...क्यूँ...||
एक मुसाफिर-विजय कुमार
बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteऐसे ही लिखते रहिए ...
धन्यवाद भैया....
Deleteधन्यवाद..................
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति. आभार. मोहपाश को छोड़ सही राह अपनाएं . रफ़्तार ज़िन्दगी में सदा चलके पाएंगे . please remove word veryfication go to comment>verifications
ReplyDeleteखाली हाथ आयें हैं खाली हाथ जायेंगे ,अच्छी बुरी साथ ले जायेंगे ..बढ़िया रचना है
ReplyDeleteतो फिर साथ जीने मरने का कसमे क्यूँ खाते हैं|
दोश्ती,मोहबत,नफ़रत,परिवार,
सब यही तो पाते हैं|
जीने मरने की "कसमें" कर लें/यही को यहीं कर लें ...एक आदि ओर स्थान पर अनुस्वार (बिंदी )छूट गई है .
खाली हाथ आयें हैं खाली हाथ जायेंगे ,अच्छी बुरी साथ ले जायेंगे ..बढ़िया रचना है
तो फिर साथ जीने मरने का कसमे क्यूँ खाते हैं|
दोश्ती,मोहबत,नफ़रत,परिवार,
सब यही तो पाते हैं|
जीने मरने की "कसमें" कर लें/"यही" को "यहीं" कर लें ...एक आदि और स्थान पर अनुस्वार (बिंदी )छूट गई है .जहां "मे" है वहां "में" आयेगा ...
धन्यवाद..आगे से इस ग़लती को सुधारने की कोशिश करूँगा...
Deleteधन्यवाद.
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